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मंगलवार, 27 जुलाई 2010

जिन्दगी

हवा में लिपटा धुंआ
हांडी में पकते टमाटर की खुशबु
और कुछ बारिश ,बारिश का भीगापन


बाहर आई काली मिटटी को जी छूना चाहता हैं
नए माकन की नींव खुद रही है

लोग ताप रहे हैं
और कांच के टुकड़े में अक्स देखती
लड़कियां कंघी कर रही हैं
काम पर जाने से पहले


टहनियों से झाँक रही हैं किरणे


कही ढोल बज रहा है
उठ रहा हैं स्वर
गूंजता हुआ


रतन चौहान
टहनियों से झांकती किरणें