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मंगलवार, 27 जुलाई 2010

जिन्दगी

हवा में लिपटा धुंआ
हांडी में पकते टमाटर की खुशबु
और कुछ बारिश ,बारिश का भीगापन


बाहर आई काली मिटटी को जी छूना चाहता हैं
नए माकन की नींव खुद रही है

लोग ताप रहे हैं
और कांच के टुकड़े में अक्स देखती
लड़कियां कंघी कर रही हैं
काम पर जाने से पहले


टहनियों से झाँक रही हैं किरणे


कही ढोल बज रहा है
उठ रहा हैं स्वर
गूंजता हुआ


रतन चौहान
टहनियों से झांकती किरणें

1 टिप्पणी:

  1. अक्सर लोग अपने नाम के अनुसार अपने को बना भी लेते है और बनाने में कभी कभी उल्टा भी हो जाता है,आदर्णीय रतन चौहान की कवितायें मैने पढी है,और भावनाओं की अभिव्यक्ति को समझने में पहले तो साधारण सा लगता है,लेकिन जब उन भावनाओं के अन्दर प्रवेश किया जाये तो लगता है कि हर शब्द के अन्दर झांकने के बाद कुछ और ही निकलता चला जाता है,एक श्रेणी अपने आप बनती चली जाती है,"अमलतास" के अर्थ को लोग एक साधारण वृक्ष के रूप में समझकर आगे बढ जायेंगे,लेकिन इस पांच अक्षर के शब्द के अन्दर जो अद्रश्य है उसे समझने के बाद अभिव्यक्ति से बाहर निकलना किसी भी विद्वान के वश के बाहर की बात है,बधाई उनके जीवन की भावनाओं को संसार के सामने प्रकाशित करने की,अच्छा था कि उनकी मूल रचना को प्रकाशित करने के बाद उसका अर्थ भी नीचे हिन्दी मे लिखा जाता।

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